भोपाल निवासी कवयित्री सीमाहरि शर्मा के नवीनतम गीत संग्रह का नाम है ‘‘यक्ष उत्तर’’। अतः स्वाभाविक रूप से ‘‘यक्ष उत्तर’’ नाम पढ़ते ही यक्ष प्रश्न का प्रसंग मानस में कौंध गया।
‘महाभारत’ का एक रोचक प्रसंग है। वनवास के दौरान पाण्डवों को प्यास लगी। वे थक गए थे। तभी उन्हें एक जलाशय दिखा। वे सभी एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने और पानी पीने के लिए रुके। तब सहदेव सबसे पहले पानी पीने जलाशय के निकट गया। जलाशय के तट में रहने वाले यक्ष ने उसे रोका और पहले उसके प्रश्नों के उत्तर देने का आदेश दिया। सहदेव यक्ष के आदेश पर ध्यान दिए बिना पानी पीने लगा। दूसरे ही पल वह गिर कर मर गया।
उसके बाद एक-एक कर के नकुल, भीम और अर्जुन आए। उन तीनों भाइयों का भी वही परिणाम हुआ। जब युधिष्ठिर वहां पहुंचा तो उसने अपने भाइयों को मृत पाया। तभी यक्ष प्रकट हुआ और युधिष्ठिर से भी प्रश्नों के उत्तर मांगने लगा। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सौ प्रश्नों के सही-सही उत्तर दिए जिससे प्रसन्न हो कर यक्ष ने युधिष्ठिर के भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। यक्ष के प्रश्न इतने कठिन थे कि युधिष्ठिर के अतिरिक्त उनका उत्तर कोई और दे ही नहीं सकता था। इस प्रसंग से ही कठिनतम समाधान वाली समस्या को यक्ष प्रश्न कहा जाने लगा।
सीमाहरि शर्मा की संवेदनाओं का धरातल विस्तृत है इसीलिए ‘‘यक्ष उत्तर’’ में वे सारे प्रश्न सामने रखती हैं जो वर्तमान जीवन से जुड़े हुए हैं। आधुनिक जीवनशैली ने प्रकृति से मनुष्य की दूरी किस प्रकार बढ़ा दी है इसे उन्होंने अपनी कविता ‘‘ओ बसन्त!’’ में पूरी गंभीरता से वर्णित किया है। कविता की कुछ पंक्तियां-
ओ बसन्त तुम मेरे घर तक
कैसे आओगे?
दूर-दूर तक पेड़ नहीं,घर मल्टी में मेरा
हवा बसन्ती को नभ छूते मालों ने फेरा
किरण अगर बरजोरी खिड़की तक आ भी जाती
ऊँची दीवारों की छाया
उसको डँस जाती
आज के जीवन में यक्ष प्रश्नों की कोई कमी नहीं है। अर्थात हर पग पर अनेक समस्या एँ घेरे रहती हैं जिनमें से अधिकांश के जन्मदाता तो हम मनुष्य स्वयं हैं। जैसे बेटियों के अस्तित्व पर संकट, पर्यावरण पर संकट, बाजारवाद को आँखमूँद कर आत्मसात करना आदि-आदि। कवयित्री सीमाहरि शर्मा ने इन सारे प्रश्नों को उत्तर के बहाने प्रतिप्रश्न के रूप में अपने गीतों में पिरोया है। यद्यपि संग्रह के नामकरण के संबंध में उन्होंने ‘‘अपनी बात’’ के अंतर्गत लिखा है कि -‘‘संग्रह का नाम ‘उत्तर यक्ष हुए हैं जब-जब’ रखने का विचार मन में आया। परन्तु अधिक लम्बा होने के कारण विद्वजनों से परामर्श के पश्चात ‘यक्ष-उत्तर’ रखा।’’
कवियित्री ‘‘यक्ष उत्तर’’ कविता में उत्तरों की अनुत्तरिता को प्रश्नों के समकक्ष रखा है। उन्हीं के काव्यात्मक शब्दों में -
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नवगीत संग्रह- यक्ष उत्तर, नवगीतकार- सीमा हरि शर्मा, समीक्षक- शरद सिंह, प्रकाशक- श्वेतवर्णा प्रकाशन, २१२, एक्सप्रेसव्यू एपार्टमेंट, सुपर एमआईजी, सेक्टर ९३, नोएडा - २०२३०४, कवर- हार्डबाउन्ड, पृष्ठ- १३६, मूल्य- रु. २४९, ISBN- 978-81-19590-95-7

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