शनिवार, 1 मार्च 2025

यक्ष उत्तर- सीमा हरि शर्मा


‘महाभारत’ का एक रोचक प्रसंग है। वनवास के दौरान पाण्डवों को प्यास लगी। वे थक गए थे। तभी उन्हें एक जलाशय दिखा। वे सभी एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने और पानी पीने के लिए रुके। तब सहदेव  सबसे पहले पानी पीने जलाशय के निकट गया। जलाशय के तट में रहने वाले यक्ष ने उसे रोका और पहले उसके प्रश्नों के उत्तर देने का आदेश दिया। सहदेव यक्ष के आदेश पर ध्यान दिए बिना पानी पीने लगा। दूसरे ही पल वह गिर कर मर गया। 

उसके बाद एक-एक कर के नकुल, भीम और अर्जुन आए। उन तीनों भाइयों का भी वही परिणाम हुआ। जब युधिष्ठिर वहां पहुंचा तो उसने अपने भाइयों को मृत पाया। तभी यक्ष प्रकट हुआ और युधिष्ठिर से भी प्रश्नों के उत्तर मांगने लगा। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सौ प्रश्नों के सही-सही उत्तर दिए जिससे प्रसन्न हो कर यक्ष ने युधिष्ठिर के भाइयों को पुनः जीवित कर दिया।  यक्ष के प्रश्न इतने कठिन थे कि युधिष्ठिर के अतिरिक्त उनका उत्तर कोई और दे ही नहीं सकता था। इस प्रसंग से ही कठिनतम समाधान वाली समस्या को यक्ष प्रश्न कहा जाने लगा।

सीमाहरि शर्मा की संवेदनाओं का धरातल विस्तृत है इसीलिए ‘‘यक्ष उत्तर’’ में वे सारे प्रश्न सामने रखती हैं जो वर्तमान जीवन से जुड़े हुए हैं। आधुनिक जीवनशैली ने प्रकृति से मनुष्य की दूरी किस प्रकार बढ़ा दी है इसे उन्होंने अपनी कविता ‘‘ओ बसन्त!’’ में पूरी गंभीरता से वर्णित किया है। कविता की कुछ पंक्तियां-

ओ बसन्त तुम मेरे घर तक
कैसे आओगे?

दूर-दूर तक पेड़ नहीं,घर मल्टी में मेरा
हवा बसन्ती को नभ छूते मालों ने फेरा
किरण अगर बरजोरी खिड़की तक आ भी जाती
ऊँची दीवारों की छाया
उसको डँस जाती

आज के जीवन में यक्ष प्रश्नों की कोई कमी नहीं है। अर्थात हर पग पर अनेक समस्या एँ घेरे रहती हैं जिनमें से अधिकांश के जन्मदाता तो हम मनुष्य स्वयं हैं। जैसे बेटियों के अस्तित्व पर संकट, पर्यावरण पर संकट, बाजारवाद को आँखमूँद कर आत्मसात करना आदि-आदि। कवयित्री सीमाहरि शर्मा ने इन सारे प्रश्नों को उत्तर के बहाने प्रतिप्रश्न के रूप में अपने गीतों में पिरोया है। यद्यपि संग्रह के नामकरण के संबंध में उन्होंने ‘‘अपनी बात’’ के अंतर्गत लिखा है कि -‘‘संग्रह का नाम ‘उत्तर यक्ष हुए हैं जब-जब’ रखने का विचार मन में आया। परन्तु अधिक लम्बा होने के कारण विद्वजनों से परामर्श के पश्चात ‘यक्ष-उत्तर’ रखा।’’ 
कवियित्री ‘‘यक्ष उत्तर’’ कविता में उत्तरों की अनुत्तरिता को प्रश्नों के समकक्ष रखा है। उन्हीं के काव्यात्मक शब्दों में -

उत्तर जब हों यक्ष प्रश्न से 
प्रश्नों ने स्वीकारे हैं
xxx
प्रश्न खड़े हैं ठगे-ठगे से ये कैसे उत्तर पाये?
निर्धारित उत्तर सारे थे प्रश्नों से पहले आये
जब-जब हाथ बँधे उत्तर के
प्रश्न स्वयं से हारे हैं

सौरभ पांडे ने संग्रह के गीतों को ‘‘सामाजिक बर्तावों पर सशक्त आईना दिखाते गीत’’ कहा है और डॉ. अशोक बाबूलाल सनोठिया सेवानिवृत श्रम न्यायाधीश ने इसे ‘’सामाजिक समस्याओं को उद्धृत करता गीत संग्रह’’ कहा है। यह सच है कि भौतिकतावाद की अंधी दौड़ से सबसे अधिक अभिशप्त है बचपन। बच्चा होश भी नहीं सम्हाल पाता है और उस पर बस्ते का भारी बोझ, नंबरों का दबाव और विलक्षणता प्रदर्शित करने का दायित्व लाद दिया जाता है। यही कारण है कि बचपन अपनी स्वाभाविकता खोता जा रहा है। इस बात को कवयित्री सीमाहरि ने अपनी ‘‘लौटा दो बचपन’’ कविता में यथार्थपरक शब्दों में कहा है-

हुए बोझ से बोझिल काँधे बस्ते हैं भारी।
अंग्रेजी में हिंदी पढ़ना कैसी लाचारी।
शिक्षा है व्यापार, लूटते
मात-पिता का धन

यतीन्द्रनाथ राही ने इस संग्रह की रचनाओं को ‘‘कबीर की उलटबांसी की तरह कहा है- वे लिखते हैं-‘‘उत्तर हैं, प्रश्न तो अब पाठकों को खंगालने हैं। जो बाँचे सो पावे की बात है। ‘मन की दुनिया जग की माया’ है। शायद मिल जाए कहीं उत्तर का प्रश्न भी किसी ‘बसंत में’ किसी ‘ढलती साँझ में’ किसी ‘जलते दिए में’ ‘कुछ रोने कुछ गाने’ में, ‘सावन के किसी मेघ में’ या फिर ‘मौन साधे उत्तरों में’, कहीं तो होंगे ही वे यक्ष प्रश्न भी जिन्हें खोजा जाता रहा है सदियों से पल-पल।’’ कवयित्री को जितनी चिन्ता बचपन के रूप में मानव के भविष्य की है उतनी ही चिन्ता प्रकृति के निरंतर होते असीमित दोहन की भी है। 
‘‘तेवर तुम्हारे’’ कविता में वे कहती हैं-
खजाने प्रकृति के सारे खड़े 
बाहें पसारे सब
नहीं दोहन करो इतना सभी जी भर तुम्हारे हैं
हवा श्वासें लिये चलती तुम्हारे ही लिए तो है
धरा जलती अथक तपती 
तुम्हारे ही लिए तो है


सीमाहरि शर्मा के जनसरोकार जिन स्थितियों पर विचार करने का आग्रह करते हैं वे मन को द्रवित करने वाली हैं। इसका सटीक उदाहरण है ‘‘तारा’’ कविता। इसमें उन्होंने मज़दूर मां की बेटी का वर्णन किया है-

जर्जर छोर फ्रॉक का, नन्हे भाई को पकड़ाकर
नाजुक हाथों में गोदी के, बालक को धकियाकर
‘मजदूरी करने जाती हूँ काम पड़ा है भारी’
नन्ही तारा को समझाकर,
कहती है महतारी

कवयित्री श्रीमती सीमाहरि शर्मा का का प्रथम गीत संग्रह ‘गीत अंजुरी’ २०१८ में प्रकाशित हुआ था, जिसे हिंदी साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा “बालकृष्ण शर्मा नवीन प्रथम कृति प्रादेशिक पुरस्कार” दिया गया था। किसी रचनाकार की प्रथम कृति का पुरस्कृत होना, रचनाकार को उसके रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करते हुए नई उर्जा प्रदान करता है। कवयित्री का दूसरा काव्य संग्रह ‘यक्ष उत्तर’ २०२३ में पाठकों के सम्मुख आया जो रचनाकर्म के प्रति उनके समर्पण का साक्षात प्रमाण है।  यह दूसरा गीत संग्रह है। संग्रह की सभी कविताएं पठनीय है तथा गहन चिंतन को विवश करती हैं। कवयित्री सीमाहरि शर्मा ‘‘यक्ष उत्तर’’ के रूप में अपनी सभी चिंताओं, अपने सभी सराकारों एवं मानव के उज्जवल भविष्य के प्रति अपनी सभी आकांक्षाओं को व्यक्त करने में पूर्णतः सफल हुई हैं। उनके भीतर की चिंतनशील कवयित्री को इस संग्रह की कविताओं में बखूबी देखा और उनके सृजन के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है।

लेखिका की भाषिक संपदा अपार है। विषयानुरूप संस्कृतनिष्ठ, तत्सम, देशज, उर्दू, अंग्रेजी, बोलचाल की  शब्दावली प्रयुक्त हुई है जैसे  ‘माँ शारदे’ और ‘नमोस्तुते गजानना’ में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली प्रयुक्त हुई  है जो अपेक्षित भाव-गांभीर्य प्रदान करती है, अन्य रचनाओं में अधिकांशतः परिनिष्ठित हिंदी का प्रयोग है । आधुनिक युग की वैश्विक महामारी कोरोना पर आधारित रचनाओं में अंग्रेजी शब्दों की बहुलता है- जैसे-सेनेटाईज़,मास्क,प्लेन रेल मोटर। भाषा रचनाओं में व्यक्त भावों को सशक्तता से वहन करती चलती है। पढ़ते हुए कई पंक्तियाँ गुनगनाने का दिल करता है।  तमाम नकारात्मकता के मध्य समाधान के रूप में लेखिका का आशावादी स्वर मुखरित हो उठता है-
 ‘जो पग- पग पीछे मुड़े नहीं,  
जो संग सूर्य से रहे जुड़े
 ऐसे सपनों का स्वागत है’।

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नवगीत संग्रह- यक्ष उत्तर, नवगीतकार- सीमा हरि शर्मा, समीक्षक- शरद सिंह, प्रकाशक- श्वेतवर्णा प्रकाशन, २१२, एक्सप्रेसव्यू एपार्टमेंट, सुपर एमआईजी, सेक्टर ९३, नोएडा - २०२३०४, कवर- हार्डबाउन्ड, पृष्ठ- १३६, मूल्य- रु. २४९, ISBN- 978-81-19590-95-7

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