'नागकेसर हवा' नवगीत-संग्रह २०२१ में ईशान प्रकाशन मुजफ्फरपुर से प्रकाशित है। ८६ गीतों वाले इस संग्रह की फ्लैप सामग्री आदरणीय वरिष्ठ गीत हस्ताक्षर डॉ भारत भूषण जी ने तथा डॉ मधुसूदन शाहा जी ने लिखी है। पुस्तक के अंतरा में डॉ शांति सुमन जी अपने नवगीत यात्रा के संदर्भ में आलोचकों एवं गीत कारों की टिप्पणियां उद्धृत करते हुए कहती हैं----" दूसरी ओर डॉक्टर मैनेजर पांडे ने कहा--' शांति सुमन गीत की सीमा और शक्ति जानती हैं। जो रचनाकार अपनी विधा की सीमा नहीं जानता वह उसकी शक्ति को भी नहीं पहचान पाता।' मदन कश्यप ने दुर्लभ गीतकार मानते हुए लिखा-- 'उनके गीतों से होकर 'मौसमी फूलों की सुगंध से भरी हवाएं भी गुजरती हैं और 'छिड़ी हुई दुनिया में भूख की लड़ाई' की अनुगूँज भी मिलती है'--- डॉ शिवकुमार मिश्र मानते हैं कि जन धर्मिता और कविता धर्मिता का एकात्म है शांति सुमन के गीत, जो कविता को उसके वास्तविक आश्रय में जन्म चरित्री बनाते हैं।' और नचिकेता तो लिखते हैं कि 'हिन्दी जनगीत रचना के क्षेत्र में शांति सुमन, शायद पहला स्त्री गीतकार हैं, जिनकी रचनाएं (गीत) संघर्षशील जन- संघर्षों में जुझारू मेहनतकश आवाम के द्वारा गाए गए हैं।'
उपरोक्त उद्धरण अपने आप में साक्ष्य और सामर्थ्य की बही-खाता प्रस्तुत करते हैं । नागकेसर हवा से गुजरते हुए सबसे पहले ' धूप में पंख' पर जाकर नजरों की रोशनी थोड़ी चटक होकर वहीं स्थिर हो गयी ।
यह नवगीत मनुष्य के साहस और जिजीविषा को दुलारता है। जीवन के संघर्ष को जीवनोन्मुखी औषधि सिद्ध करता है। सुकर्म को अनिवार्य मानते हुए दस्तावेज की भांति धैर्य एवं स्नेह से संभालने तथा सहेजने की बात करता है । यह गीत श्रम की सुफलताओं में आहूत हुए क्षणों और पीड़ाओं की सार्थकता को पुरस्कृत करता है। यही है जीवन की अनिवार्य जीवंत गतिशीलता और सृजन का संसार जबकि लीक पर चलती आ रही अनावश्यक परम्परा को यह गीत खारिज कर देता है। स्त्री को समय पर घर लौट आने की अनिवार्य विरुदावली से मुक्त करके जिम्मेदारियों के प्रति उसकी निष्ठापूर्ण प्रतिबद्धता को ऊंचे सिंहासन पर स्थापित करता है। ये जो पंक्ति 'कोई बात नहीं' गीत में रचा गया है । यह पंक्ति अनजाने ही परम्परा को स्त्री के प्रति उदार बन जाने का आह्वान ही सिर्फ नहीं करती बल्कि उसकी स्वीकार्यता की पटकथा भी लिखती है । प्रेम और संवेदना में सीझती स्त्री परिवार और संतानों की अधरों पर हँसी की चटखन निहारने को सर्वस्व निछावर करके उस एक आने वाले पल को निरखती रहती है। यह नवगीत जितना सुंदर है उतना ही वात्सल्य पूर्ण प्रेम भी आलोड़ित करता है ।
'गमके हैं कनेर' एक प्रीत भरा मीठा सा रूमानी नवगीत है जिसमें हृदय के अन्तः कपाट अनुकूल हवा के बहाव में खुलकर सुगंध से तर-ब-तर होते रहते हैं।
' हरे नील पोखर' नवगीत भी प्रेम की खुशनुमा अनुभूति को स्मरण करता बीते दिनों की तुलना में, प्रेम की खोज में पंख पसारता है । प्रेम का समय के साथ पुराना और मद्धिम पड़ना जहां संसार का यथार्थ है तो वहीं चिर युवा प्रेम में भीगना मनुष्य की चिर स्थायी सुप्त और असुप्त आकांक्षा है।
समीक्षक ने पुस्तक का शीर्षक गीत 'नागकेसर हवा' की रमणीयता और प्रेम को, आत्मा में तृप्त साधन की तरह संचित करके, उसके कण-कण की सुगंध को सराबोर हो जाने का अवसर मुठ्ठी में कसकर भींच लिया है। नागकेसर के वृक्ष की भव्यता और ऐश्वर्यपूर्ण सुगन्ध प्रकृति की वायुमंडल को अपने प्रीत और नेह से भर जाती है। यह हवा सुगंध का सुंदर उपहार देकर सभी सजीवों के मन की सांकल खटखटा कर खोल जाती है। उसमें एक मनुष्य भी है विशेषतः।
डॉ शांति सुमन के नवगीत मुख्यतः घर- परिवार प्रेम,नेह, सामाजिक ताने-बाने और रिश्तों की डोर की रेशमी खूंटी के इर्द-गिर्द बुने गये हैं। जिनके कहन की गहराई प्रभावित करती है। स्त्री की अस्मिता विद्रोही या क्रांतिकारी नहीं है बल्कि जिजीविषा और नेह से पूरित स्त्री बच्चों की दुनिया को खुशी से सँवारती-सहेजती जब संध्या को थकान से पस्त हो जाती है तो अगले दिन की उड़ान के लिए पुनः सम्बल जुटाती है और थकान को अपनी जिजीविषा और निष्ठा से परास्त करके स्थिति का समाहार करती है । वह दिनचर्या की दुर्गम यात्रा में चोटिल हुए शारीरिक और मानसिक स्थितियों को धैर्य से दुरुस्त करती है और अगले दिन की दिनचर्या के लिए खुद को लक्षित करती है।
इस परिप्रेक्ष्य में वह मेड़ों के दायरों को तोड़ने का साहस भरपूर प्रदर्शित करती है। वह दिव्य प्रसन्नता की अनुभूति करती है । संग्रह का नवगीत 'खुले खेत की हवा' मे इन मनोभावों को सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है---
'खुली खेत की हवा में ' चिड़ियों का खुली बाहें फैलाना मेड़ों की चौहद्दी को ठोकर मारना है। लक्ष्य की अपनी एक सुगंध होती है । उसका आकर्षण होता है। फूल सुकोमल भावनाओं का उजास है जिसके रंग मोहक हैं और सुगंध तृप्तिदायक । रंग भरा प्रकाश जो पर्वत पर बिखरा है उसमें आभा, तपिश और उजियारे का संगम है। जिसे अपनी मांग में सिंदूर सजाने जैसा सहर्ष सुमंगल एवं प्रेम पूरित आह्लादित अनुभूति को श्रृंगार बनाकर धारण कर लिया जाता है। चिड़िया का रूप ऐसे खिलना जैसे कई हरसिंगार के पेड़ों पर फूलों का खिलकर भर जाना। आदि उपमाएं इस नवगीत में मिलते हैं । यह चिड़िया और कोई नहीं, बल्कि एक स्त्री है। वह अपने सपनों की उड़ान पर है।
'उड़े से दिन' नवगीत सामाजिक व्यवस्था पर सुंदर अभिव्यक्ति है। नवगीत तेज गति से भागते समय में व्यवस्था की विसंगतियों को उकेरती है ऊपर से चारों तरफ की व्याप्ति चुप्पियाँ परिस्थितियों को और कठिन बनाती हैं। यह गीत आज के संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना एक दशक पहले का यह गीत मुखरित है ----
संग्रह के नवगीतों की एक विशिष्ट शैली है जो शांति सुमन की कलम की पहचान बनकर दर्ज होती गयी है । गीतों में चिड़िया, पेड़, नदी, जेठ महीना आदि प्राकृतिक बिम्बों में नए शब्दावली में प्रतीक और भाव प्रस्फुटित होते हैं । खुशी रँगी आँखें, हँसी का पानी , आदि जगह-जगह पर बिखरते मिलते हैं। वैसे तो संग्रह में कुल ८६ नवगीत संकलित हैं परन्तु कुछ नवगीतों की महक अपने-आप आपको सम्मोहित करती है । उन्हीं में से एक गीत है 'रेशम के फूल' जिसमें रिश्ते की आत्मा संपृक्त हो गई हो मानो। यह गीत बुआ के रिश्ते का व्यावहारिक बर्ताव चित्रित करता जीवंत पलों को प्रत्यक्ष सम्मुख उपस्थित कर देता है। रिश्तो में छुपी गहराई के स्नेह को आदर भी उपहार में परोस जाता है ।
गीत में चौबारे का कथा-किस्सा बुआ के रिश्तों की प्रशस्ति गान के साथ स्वतः संपादित होकर उनकी उपस्थिति के साथ पूरा दृश्यमान हो जाता है। गीत में बुआ की जीवंतता नयी ऊर्जा का संचार करती है। दीवारों से झरते चूने और घर-दलानों का साफ करना, उनका टप-टप बोलना आदि। सभी कुछ नवगीत में जीवंत हो गया है। चित्रण सजीव दृश्य उपस्थित करते हैं । मन मिजाज की रपटीली होना यानी फिसलनों या चंचल और बेधड़क स्वभाव बचपन के हठी बालक सदृश्य भीतर किसी कोने में मूलरूप से संजोए रखना ही बुआ को बुआ बनाता है। दिखावे और औपचारिकता से मुठभेड़ करती बुआ में निहित उनके अपने तेज स्वभाव में मक्खन जैसा नरम हृदय और पवित्र नीयत की भावों की टोकरी, उन्हें विश्वसनीय एवं शुभचिंतक बनाते हुए रिश्तो की खुशबू से नहला देती है।
जैसा मैंने पहले कहा ही है कि डॉ शान्ति सुमन के नवगीत आस-पास के दृश्य एवं अनुभव से और भोगे हुए व्यक्तिगत यथार्थ से उपजे हैं। बिल्कुल मन के नजदीक से बहती कोसी नदी भी उनके हृदय में गीत बनकर उत्प्लावित हो गयी है।
लेखनी से शब्द झरकर लिखने लगते हैं गीत 'कोसी महारानी' ----
कोसी नदी का बालू उगलना और भोला तीन परानी का तीन दिनों से अँतरी दबाकर बिताना दुख और हताशा के चरम को चित्रित करता है । पेट में जब भूख अधिक लगी रहती है तो दर्द की अनुभूति होती है ऐसे में पेट को घुटनों में दाबकर बैठना पेट की मांसपेशियों को राहत पहुँचाता है। यह भूख का दर्द कितना निष्ठुर और निर्मम छवि उपस्थित करता है। ऐसी परिस्थितियों में गांव में किसी मेहमान या पाहुन यानि आगंतुक के ना आ जाने की मनौती करना कितना दारुण दृश्य है। घर की मुंडेर पर कौवे की आवाज में जब भिनसारे पाहुन के आने की सूचना मिलती थी तो मन विभोर हो हर्ष- उल्लास से जीवन-उत्सव की तैयारी करने लगता था । रिश्ते-नाते ही मनुष्यता की डोर को मजबूत करते हैं । सब का संग-साथ होना ही जीवन-उत्सव है ।
लेकिन जब स्वयं भोला परानी इसका परित्याग कर किसी के आगमन का प्रतिकार करें तो पीड़ा की गहराई को समझा जा सकता है। नवगीत में देखा जा सकता है कि डॉ शान्ति सुमन के शब्द, शिल्प और भाषा में ढलकर तथ्य कैसे जीवंत हो जाते हैं । इसी गीत के अंतिम बन्ध में भोजन और चारा के अभाव में सिलेबिया गाय का छानी तोड़कर भाग जाना, अपने बछड़े तक का ध्यान न कर पाना भूख और अभाव की विभीषिका को दर्शाता है। एक नदी के सूख जाने से कितनी सारी जिंदगियाँ तबाह होने के कगार पर आ पहुँचती हैं! संस्कृति और परम्पराओं का सुलभ संसार भी बाधित हो जाता है । बड़ी बुआ का नदी नहाने जाना भी बन्द हो जाता है। कोसी नदी पर निर्भर रहने वाले किसान नदी के सूखने पर दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं और उनके जीवन की नदी का भी प्रवाह नदी के साथ ही रुक जाता है। नदियों और जल स्रोतों का सूखना जैसा बड़ा विषय इस गीत को भी बड़ा बना है। शिल्प और शब्दों का चयन प्रभावोत्पादकता को उत्कर्ष देता है ।
'अनहद का सुख' एक अच्छा गीत है । अभाव में थोड़े से संतुष्ट होने वाला जीवन खुशियों की प्रतीक्षा का मोहताज नहीं है वह उन्हीं अपने दीन-हीन आर्थिक अभावों में सुख पाने का मंत्र ढूंढ लेता है। लेकिन रचनाकार डॉ शांति सुमन इसे अनहद का सुख कहती हैं जो ईश्वर के रहने का स्थान बन गया है।
संग्रह में नये-नये बिम्ब प्रयोगों से नवगीतों में नयापन और हरापन दोनों उजास पाते हैं --'किताबें धूलों की, पुलकवाली नींद, पानी पर पानी जैसे आकर्षित करते बिम्ब संग्रह की रचयिता को शिल्प में मँझे हुए खिलाड़ी की उपाधि स्वयं दे देते हैं । संग्रह का आखरी दूसरा नवगीत भी बहुत प्रभावी है जो जन जीवन के संघर्ष को उसकी कठिन दिनचर्या और चिंता को बखूबी अभिव्यक्त करता है ।
अपने लेखकीय यात्रा में गीत, कविता, उपन्यास, आलोचना एवं संपादन के सभी क्षेत्र में डॉ शान्ति सुमन जी की लेखनी चलती है परन्तु उनकी अपनी पहचान बनती है उनके अपने नवगीतो से । वे नवगीत के द्वारा नवगीत के लिए स्वयं चुन ली गयीं । नवगीत ही अब उनकी पहचान है । कहीं-कहीं लय की बाधा मेरी समझ-सामर्थ्य के आड़े जरूर आयी है लेकिन गहराई, शिल्प और प्रतिबिम्बों का गहन कहन नवगीतों को साधारण कथ्यों के साथ भी विशेष बनाते हैं ।
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नवगीत संग्रह- नागकेसर हवा, नवगीतकार- शांति सुमन, समीक्षक- शीला पांडे, प्रकाशक- ईशान प्रकाशन, मीठनपुरा, क्लब रोड, रमना, मुजफ्फरपुर-८४२००२ ( बिहार ), कवर- हार्डबाउन्ड, पृष्ठ- १०६, मूल्य- रु. १५०, ISBN-

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