सोमवार, 1 जुलाई 2024

धूप रंगे दिन- शांति सुमन

यद्यपि नवगीत ने हिंदी साहित्य के इतिहास में अपनी जगह बना ली है परंतु गीत सृजन भावनाओं का एक प्रवाह है जो हमारी संवेदना से उद्भूत होकर कवि और समाज के मानस पटल पर अभिव्यक्ति का जादू जगाता है। काव्य की विविध विधाओं ने साहित्य को सजाया संवारा है, परंतु केवल गेयता या शब्दों का क्रम सुनिश्चित करना ही गीत या नवगीत की कसौटी नहीं है वह अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी है।

और यही अभिव्यक्ति जब लेखनी के भाव सलिल में गंगा सी प्रवाहित होती हुई हमारे हृदयों को सिंचित करती है तो वह गीत अमर हो जाता है। ऐसे ही अमर  गीतों  नवगीतों की सृजनकर्त्री बिहार की बहुमूल्य प्रतिभा डा शांति सुमन जी सृजन की दुनिया में अद्भुत भावप्रवण गीतों की सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके गीतो को सुनना और पढ़ना मानो भावों संवेदनाओं की एक विलक्षण दुनिया में खो जाना है।  मैं सौभाग्य शाली हूँ कि मुझे यदा कदा उनका स्नेहिल सान्निध्य मिलता रहा है उनके आशीर्वचनों की गंगधार से आप्लावित होने का सुखद अवसर भी।

वैसे तो यदा कदा उनकी कृतियों के लोकार्पण तथा उन्हें समीप से सुनने पढने के बहुत कीमती पल भी हैं मेरी यादों में। उनके अनेक नवगीत संग्रहों पर आलोचनात्मक लेख लिखे गए समीक्षाएँ लिखी गई  लेकिन  मैं उनके नवगीत संग्रह जो २००७ में लिखा गया धूप रंगे दिन पर कुछ लिखना चाहती थी। उसके गीत मेरे मन को छूते हैं। पाठकीयता से भरपूर ये गीत समाज और मानव मन का आईना हैं।

वरिष्ठ कवि  लेखक डा शिवकुमार मिश्र जी ने डा शांति सुमन जी के गीतों को मानवीय चिंता से उपजे  अंर्तमन के गीत कहा है। उनका मानना है कि गीत, शांति सुमन की रचनाधर्मिता का स्व-भाव है, जिसे उन्होंने काव्याभिव्यक्ति की अनेक विविधताओं, स्वरुपों और नदी की धार-सी उठती गिरती तरंगित लहरों के समान जिया है।
कभी नदी के तट सरीखी
कभी उफनती धार
रंगों से भर दिया तुमने
एक कोमल प्यार 

शान्ति सुमन का जन्म बिहार के कासिमपुर सहरसा में हुआ वहीं की पृष्ठभूमि में सृजन की शुरुआत हुई भावनात्मक विकास हुआ और कल्पना ने उड़ान भरी, इसलिए बिहार की माटी वहाँ के संघर्ष और खेती किसानी की तमाम उलझनो और परेशानियों को उन्होने करीब से देखा था, और जनपदीय चेतना से ओतप्रोत भावनाएँ उनके सृजन में, उनके गीतों में समाहित होती चली गईं।  उनकी रचनाधर्मिता की सुंदर प्रस्तुति हैं वे गीत, जो उनके 'धूप रंगे दिन' शीर्षक संकलन में, उनकी रचनाधर्मिता की सारी ऊष्मा और ऊर्जा को लिए हुए हैं। यही नहीं, समय के बदले और बदलते संदर्भों में अनुभव-संवेदनाओं की नई ऊर्जा और नया  आकाश भी रचनाकार ने उन्हें दिया है।  

बाग घर आँगन लिपवा लो, 
भाभी यह दालान लिखवा लो
पर अपने हिस्से भैया का प्यार नहीं दूँगा

घुटनों के बल चले जहाँ पर खाए खील बताशे
दीवाली में लपट लाँघते खुब बजाए ताशे
यह माँ का कंगन बिकवा लो
भाभी यह अनबन मिटवा लो
पर इस आँगन में बनने दीवार नहीं दूँगा।

उनका यह गीत मुझे और मेरी प्रिय सखी तथा उनकी पुत्री चेतना वर्मा को भी अत्यंत प्रिय है। इस गीत का भाव मर्म को छूता है। आज जहाँ घर जमीन जायदाद को लेकर पारिवारिक विघटन हो रहे हैं, रिश्तों की मर्यादाएँ नष्ट हो रही हैं वहाँ के परिवेश में केवल भाई का प्यार और परिवार की स्नेहिल आत्मीयता की कामना भावुक बनाती है। शांति सुमन ने मानव मन का कोना कोना परखा है। सुख दुख हर्ष विषाद के पलों में हर पीड़ा, हर सुख को आत्मसात किया है। स गीत की भावना पुरानेपन को छोड़कर नयी सोच और उदारता की ओर बढाया गया एक कदम है। आने वाले समय की पुकार है। यही कारण है कि वे प्रगतिशील आन्दोलन के साथ आरंभ हुई जनगीतों की परंपरा को, नई सदी की दहलीज तक लाने वाले जन गीतकारों में पहली पंक्ति की लोकप्रिय और वरेण्य नवगीतकारों में शामिल हैं।

जनधर्मिता और कविता-धर्मिता का एकात्म हैं शान्ति सुमन के गीत, जो कविता को उसके वास्तविक आशय में जन-चरित्री बनाते हैं, उसे जन की आशाओं-आकांक्षाओं से बेहतर जिन्दगी के उसके स्वप्नों तथा संघर्षों से जो‌ड़ते हैं। शांति दी के संग्रह 'धूप रंगे दिन' में जन सरोकारों और जन पक्षधरता की झलक भी दर्शनीय है।  
तब तो आसान से थे
दुख ही बड़े अपने
अब आते पकड़ में ही 
नहीं सुख इतने

उनकी रचना में धूप जालियों में अटकी दीखती है। यह धूप कहीं संघर्ष कहीं भावनात्मक अनुराग तथा कहीं जिजीविषा से भरपूर लगती हैं। एक मजदूर माँ की लोरी का हर शब्द अंतर्मन को बेचैन करता है। इस गीत में गरीबी और भूख के आगे सपनों को बिसार देने की बात कही गई है। जीवन का यथार्थ केवल भूख की लड़ाई है। शिशु को सीखना होगा जीवन संघर्ष का गीत। खेतों में चलते हल की आवाज पहचाननी होगी। कल्पना के चाँद सितारे परियों की कथा कहानी इस लोरी का निहितार्थ नहीं है। उसे सीखना होगा कि सारी दुनिया जिस धन वैभव और भूख पर विजय प्राप्त करना चाहती है, उसे वही लोरी सुन्नी होगी। शांतिदूत ने भूख को जिंदगी का पर्याय माना है। माटी की आत्मा को पहचानने वाली कवयित्री ने जीवन के मर्म को अपनी लेखनी से उकेरा है।
लिख मेरे बेटे एक दो तीन
लिख पढके पहचानेगा जमीन
भरे पेटवाले करें जिसकी बड़ाई
पिछड़ी हुई दुनिया में भूख की लड़ाई
भूख समझाए हल फाल मशीन

शांति सुमन की रचनाओं में जहाँ लोक की लोक धर्म की खुशबू है वहीं नागार्जुन जैसी विरोध व प्रतिकार की धमक भी है। सेर्गेइ येस्येनिनने लिखा है 'कवि होना ऐसा है जैसे जीवन के प्रति निष्ठावान होना' शांति सुमन के गीत इसी जिजीविषा और जीवन निष्ठावान का साक्ष्य हैं। जब वे लिखती हैं --
गाय नहीं कहती अब वह मुनिया को
लगी समझने फिर से इस दुनिया को
अपना गाँव घर उसे अब 
अपना सा लगता है।

जीवन के तमाम झंझावातों से लड़ते हुए आम जन की जिन्दगी हताश हो अपने गाँव घर की ओर ही लौटती है। वरिष्ठ कवि साहित्यकार आदरणीय अशोक प्रियदर्शी जी ने लिखा है ॰ शान्ति सुमन के गीतों को पढ़ते-सुनते हुए जब हमारी आँखों मे आम जन की पीड़ा के रूप उभरते रहते हैं तभी आशचर्य होता है कि वह विदुषी कवयित्री अपने गँवई मन, सरोकार और संस्कार को बचाए रही। अभिधात्मक विवरणों के बीच लाक्षणिक-व्यंजक संकेत छोड़ जाने की कला भी कवयित्री खुब जानती हैं। वरिष्ठ भावप्रवण लेखिका डा चेतना वर्मा कहती हैं- शान्ति सुमन के गीतों के संसार में गीतों की पृष्ठभूमि और संगति देते हुए उनके लय-सौन्दर्य से भरे शब्द-गठन, भाषा की अनुकूलता, श्रमिक वर्ग की स्त्रियों के पहनावे, गहने और सौन्दर्य के अन्य उपकरण भी देखने योग्य हैं।

उनके इस नये संग्रह में अनेक ऐसे गीत हैं जिन्हे अंतर्वस्तु के स्तर पर समकालीन कविता से अभिन्न माना जा सकता है। 'पहचान बनो', 'मुनिया के घर का सूरज', 'तारों के झूमर', 'फटेहाल हम', आदि ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हे गीत के शिल्प में ढाल पाना दुर्लभ कुशलता थी।

स्मृतिशेष आदरणीय शांति सुमन हमारे समय के कुछ दुर्लभ गीतकारों में से हैं जो अपने शिल्प और शैली से बिल्कुल अलग होने के बाद भी समकालीन कविता से कहीं गहरे जुड़ी हुई हैं। उनकी लेखनी  आज के कठोर सच को जाँचने परखने की सूक्ष्म दृष्टि रखती थी। वे समाजिक जीवन और जन की पीड़ा को बौद्धिक धरातल पर नहीं बल्कि संवेदना और मानवीयता के कोमल धरातल पर तौलती थीं।

जीवन को कहने के लिए रचना से अधिक कोई और माध्यम  नहीं। रचनाकार की यही अस्मिता, उसका यही स्वाभिमान उसकी पहचान है, जो उसको समाज में अलग और ऊपर उठाती  है। डा शांति सुमन जैसी गीतकार कवयित्री हर युग में जन्म नहीं लेती। उनकी यह सृजनयात्रा जीवनके अंतिम क्षणों तक चलती रही- अविराम, अविचल  सृजन पथ पर।

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नवगीत संग्रह- धूप रंगे दिन, नवगीतकार- शांति सुमन, परिचय- पद्मा मिश्रा, प्रकाशक- अभिधा प्रकाशन, १५१ देवली गाँव, नयी दिल्ली-१००६२, कवर- हार्डबाउन्ड, पृष्ठ- १११, मूल्य- रु. १००,
ISBN- 81-88584-77-2

 




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