सोमवार, 25 जुलाई 2016

यादों की नागफनी - श्याम श्रीवास्तव (जबलपुर)

‘यादों की नागफनी’ सनातन सलिला नर्मदा के तट पर बसी संस्कारधानी जबलपुर के लाड़ले रचनाकार स्व. श्याम श्रीवास्तव की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन है जिसे उनके स्वजनों ने अथक प्रयास कर उनके ७५ वें जन्म दिवस पर प्रकाशित कर उनके सरस-सरल व्यक्तित्व को पुनः अपने बीच महसूसने का श्लाघ्य प्रयास किया। 

स्व. श्याम ने कभी खुद को कवि, गायक, गीतकार नहीं कहा या माना, वे तो अपनी अलमस्ती में लिखते-गाते रहे। आकाशवाणी ए ग्रेड कलाकार कहे या श्रोता उनके गीतों-नवगीतों पर वाह-वाह करें, उनके लिये रचनाकर्म हमेशा आत्मानंद प्राप्ति का माध्यम मा़त्र रहा। आत्म में परमात्म को तलाशता-महसूसता रचनाकार विधाओं और मानकों में बॅंधकर नहीं लिखता, उसके लिखे में कहाँ-क्या बिना किसी प्रयास के आ गया यह उसके जाने के बाद देखा-परखा जाता है।

यादों की नागफनी में गीत-नवगीत, कविता तीनों हैं। श्याम का अंदाज़े-बयाँ अन्य समकालिकों से जुदा है-

"आकर अॅंधेरे घर में चौंका दिया न तुमने
मुझको अकेले घर में मौका दिया न तुमने
तुम दूर हो या पास क्यों फर्क नहीं पड़ता?
मैं तुमको गा रहा हूँ  हूका दिया न तुमने"

‘जीवन इक कुरुक्षेत्र’ में श्याम खुद से ही संबोधित हैं- 
"जीवन इक कुरुक्षेत्र है 
मैं अकेला युद्ध लड़ रहा 
अपने ही विरुद्ध लड़ रहा  
शांति, अहिंसा क्षमा को त्याग 
मुझमें मेरा बुद्ध लड़ रहा।"

यह बुद्ध आजीवन श्याम की ताकत भी रहा और कमजोरी भी। इसने उन्हें बड़े से बड़े आघात को चुपचाप सहने और बिल्कुल अपनों से मिले गरल को पीने में सक्षम बनाया तो अपने ‘स्व’ की अनदेखी करने की ओर प्रवृत्त किया। फलतः, जमाना ठगकर खुश होता रहा और श्याम ठगे जाकर।
श्याम के नवगीत किसी मानक विधान के मोहताज नहीं रहे। आनुभूतिक संप्रेषण को वरीयता देते हुए श्याम ‘कविता कोख में’ शीर्षक नवगीत में संभवतः अपनी और अपने बहाने हर कवि की रचना प्रक्रिया का उल्लेख करते हैं।
तुमने जब समर्पण किया 
धरती आसमान मुझे 
हर जगह क्षितिज लगे।
छुअन-छुअन मनसिज लगे। 
कविता आ गई कोख में।

वैचारिक लयता उगी मिटटी पगी
राग के बयानों की भाषा जगी
छंद-छंद अलंकार-पोषित हुए
नव रसों को ले कूदी चिंतन मृगी

सृष्टि का  अर्पण किया
जनपद की खान मुझे 
समकालिक क्षण खनिज लगे।
कथ्य उकेरे स्याहीसोख में।
कविता आ गई कोख में।

श्याम के श्रृंगारपरक गीत सात्विकता के साथ-साथ सामीप्य की विरल अनुभूति कराते हैं। ‘नमाजी’ शीर्षक नवगीत श्याम की अन्वेषी सोच का परिचायक है-
पूर्णिमा का चंद्रमा दिखा
विंध्याचल-सतपुड़ा से प्रण
पत्थरों से गोरे आचरण
नर्मदा का क्वाँरापन नहा
खजुराहो हो गये हैं क्षण
सामने हो तुम कुरान सी
मैं नमाजी बिन पढ़ा-लिखा

‘बना-ठना गाँव’ में श्याम की आंचलिक सौंदर्य से अभिभूत हैं। उरदीला गोदना, माथे की लट बाली, अकरी की वेणी, मक्का सी मुस्कान, टिकुली सा फूलचना, सरसों की चुनरिया, अमारी का गोटा, धानी किनार, जुन्नारी पैजना, तिली कम फूल जैसे कर्णफूल, अरहर की झालर आदि सर्वथा मौलिक प्रतीक अपनी मिसाल आप हैं। समूचा परिदृश्य श्रोता/पाठक की आँखों के सामने झूलने लगता है।
गोरी सा बना-ठना गाँव
उरदीला गोदना गाँव।

माथे लट गेहूँ की बाली
अकरी ने वेणी सी ढाली
मक्का मुस्कान भोली-भाली 
टिकुली सा फूलचना गाँव।

सरसों की चूनरिया भारी
पल्लू में गोटा अमारी
धानी-धानी रंग की किनारी 
जुन्नारी पैंजना गाँव।

तिली फूल करनफूल सोहे
अरहर की झालर मन मोहे
मोती अजवाइन के पोहे
लौंगों सा खिला धना गाँव।

श्रेष्ठ-ज्येष्ठ गीतकार स्व, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने श्याम की रचनाओं को ‘विदग्ध, विलोलित, विभिन्न आयामों से गुजरती हुई अनुभूति के विरल क्षणों को समेटने में समर्थ, पौराणिक संदर्भों के साथ-साथ नई उदभावनाओं को सॅंजोने में समर्थ तथा "भावना की आँच में ढली भाषा से संपन्न" ठीक ही कहा है। किसी रचनाकार के महाप्रस्थान के आठ वर्ष पश्चात भी उसके सृजन को केंद्र में रखकर सारस्वत अनुष्ठान होना ही इस बात का परिचायक है कि उसका रचनाकर्म जन-मन में पैठने की सामर्थ्य रखता है। स्व. रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ के अनुसार "कवि का निश्छल सहज प्रसन्न मन अपनम कथ्य के प्रति आश्वस्त है और उसे अपनी निष्ठा पर विश्वास है। पुराने पौराणिक प्रतीकों की भक्ति तन्मयता को उसने अपनी रूपवर्णना और प्रमोक्तियों में नये रूप् में ढालकर उन्हें नयी अर्थवत्ता प्रदान की है।"

श्याम के समकालीन चर्चित रचनाकारों सर्व श्री मोहन शशि, डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’, संजीव वर्मा ‘सलिल’ की शब्दांजलियों से समृद्ध और श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव, माधुरी श्रीवास्तव, मनोज श्रीवास्तव, रचना खरे तथा सुमनलता श्रीवास्तव की भावांजलियों से रससिक्त हुआ यह संग्रह नयी पीढ़ी के नवगीतकारों ही नहीं तथाकथित समीक्षकों और पुरोधाओं को नर्मदांचल के प्रतिनिधि गीतकार श्याम श्रीवास्तव के अवदान सें परिचित कराने का सत्प्रयास है जिसके लिये शैली निगम तथा मोहित श्रीवास्तव वास्तव में साधुवाद के पात्र हैं।

श्याम सामाजिक विसंगतियों पर आघात करने में भी पीछे नहीं हैं। 
"ये रामराजी किस्से 
जनता की सुख-कथाएँ 
भूखे सुलाते बच्चों को 
कब तलक सुनायें"

"हम मुफलिस अपना पेट काट 
पत्तल पर झरकर परस रहे"

"गूँथी हुई पसीने से मजदूर की रोटी
पेट खाली लिये गीत गाता रहा" ... आदि अनेक रचनाएँ इसकी साक्षी हैं।

तत्सम-तदभव शब्द प्रयोग की कला में कुशल श्याम श्रीवास्तव हिंदी, बुंदेली, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों को भाव-भंगिमाओं की टकसाल में ढालकर गीत, नवगीत, ग़ज़ल, कविता के खरे सिक्के लुटाते चले गये। समय आज ही नहीं, भविष्य में भी उनकी रचनाओं को दुहराकर आश्वस्ति की अनुभूति करता रहेगा।
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गीत- नवगीत संग्रह - यादों की नागफनी, रचनाकार-  श्याम श्रीवास्तव (जबलपुर),   शैली प्रकाशन, २० सहज सदन, शुभम विहार, कस्तूरबा मार्ग, रतलाम । प्रथम संस्करण- २०१६, मूल्य- १२० रुपये, पृष्ठ- ६२ , समीक्षा- आचार्य संजीव वर्मा सलिल।

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