शुक्रवार, 1 मई 2020

गीत अँजुरी- सीमा हरि शर्मा


कविता तो स्वाभाविक उद्भूत होती है जो किसी देवी प्रेरणा अथवा नैसर्गिक प्रतिभा के कारण रससिद्ध कवि के मुख से या लेखनी से अनायास निसृत होती है। यह नैसर्गिकता सीमा हरि शर्मा के गीतों का विशेष गुण है जो प्राणतत्व की तरह उनके गीतों में अवस्थित है। "गीत अँजुरी" सीमा का प्रथम गीत संग्रह है जो हमें आशवस्त करता है कि मनुष्य और प्रकृति की रागात्मक प्रवत्तियाँ अशेष और अनन्त हैं।


संकलन में ५६ गीत हैं जो हमें आश्वस्त तो करते ही हैं संभावनाओं के अनेक द्वार भी खोलते हैं जिनके बाहर एक जगमग संसार हमारी प्रतीक्षा में है। गीत एक आदिम काव्य विधा है। गीत अनादि काल से मनुष्य की संवेदना, प्रार्थना, आनन्द, प्रेम, करुणा और श्रम को वाणी देते रहे हैं, उनका आश्रय स्थल रहे हैं। यह स्वीकार किया गया है कि भावों की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति जितनी गीत में संभव हुई है शायद अन्य किसी विधा में नहीं। हर अच्छी कविता की इच्छा अंततः गीत बन जाने की है।

गीत के प्रति पूर्वाग्रह और दुराग्रह का उत्तर जिन गीतकारों ने रचनात्मक स्तर पर दिया है उनमें सीमा हरि शर्मा का नाम पूरे भरोसे के साथ लिया जा सकता है। स्त्रीविमर्श के इस दौर में सीमा हरि शर्मा के गीतों में सिर्फ विमर्श न होकर यथार्थ मौजूद है। गीत संग्रह के कुछ गीत स्त्री के प्रति न्याय, स्वच्छंदता, और अधिकार की माँग करते हैं। संग्रह की पहली कविता माँ पर है जो नारी मन की कोमल सम्वेदनाओं से रची बुनी गई है। माँ होने का अर्थ, उसकी व्यथा, उसका अवदान एक स्त्री से ज्यादा कौन समझ सकता है "अपने तन का लहू सींचकर/जीवन तूने दिया मुझे/ हँसकर कष्ट सहे जो सारे/ याद न होगा कभी तुझे।"(पृ २६)

"पर्यटन", "मैं भी हूँ", "क्यों", जैसे गीत स्त्री की स्वतंत्रता, उसके सपने, आकांक्षाओं, और उसकी अस्मिता को गम्भीरता के साथ रेखांकित करते हैं।
उपर्युक्त प्रतीक गीतों के माध्यम से स्त्री के सामने खड़ी दृश्य, अदृश्य लड़ाइयों में वे ख़ुद तो शामिल होती ही हैं पाठकों को भी आमंत्रित करती हैं।

इधर भारतीय कविता में प्रकृति और प्रेम की जगह निरन्तर कम हो रही है। प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। प्रेम ही वह सेतु है जिसके बल पर एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से जुड़ता है। इस अहसास को अंतरात्मा से ही सुना जा सकता है। प्रेम आत्मा का संगीत है जीवन की लय है, प्रकृति का गतिमान सौंदर्य है, जिसकी शाश्वतता निर्विवाद है। कार्लमार्क्स का कथन है-"कविता के केंद्र में मनुष्य होता है और मनुष्य का केंद्र प्रेम है।"
सीमा हरि के गीतों में अनुभव एवं गहन अनुभूति से साक्षात्कार करती प्रेम की सरल,तरल स्निग्ध और आत्मीय छबियाँ मौजूद हैं।

"मन हुआ है विकल/ नैन अविरल बहें/ तुम कहो याद कैसे तुम्हारी सहें।"(पृ ४५)
"आभास तुम्हारा पारस है, मन सोने सा कर जाता है।"(पृ ५७)
"लिया प्रारब्ध ने जैसे स्वयं आकर हो प्रिय तुम"।(पृ १२०)
"अगर तुम नफरतों में जी रहे हो प्यार को समझो।"(पृ १३२)

संयोग, वियोग, समर्पण की ये उदात्त छबियाँ प्रेम का एक अनूठा और (परिचित ) संसार सिरजती हैं। सीमा हरि के गीतों में विविधवर्णी प्रकृति अपनी सुषमा लिए पूरी स्वायत्तता के साथ उपस्थित है। इस उत्तर आघुनिक समय में यह भी बड़ी सचाई है कि हम विकास के नाम पर अपनी प्रकृति को खत्म करते जा रहे हैं। उसका दोहन कर रहे हैं विनाश कर रहे हैं। खलील जिब्रान का एक सूक्ति वाक्य है - "वृक्ष आकाश के पृष्ठ पर धरती द्वारा लिखे गए सुंदरतम गीत हैं।"

संग्रह का एक गीत है- "बड़ी त्रासद कहानी है सुनो हम मूक पेड़ों की/ लुटा सर्वस्व अपना भी व्यथा सहते सँहारो की।" (पृ ७०)। इन गीतों में अपनी प्रकृति को बचाने की चिंता और बेचैनी तो है ही मन का सतरंगी उल्हास भी है। यह कवयित्री को प्रकृति के सानिध्य से प्राप्त हुआ है। गीतों में गाँव हैं जो बुलाते हैं, फागुन का मौसम है जो चारों धाम की यात्रा जैसा है, ऋतुराज के रंगों का उत्सव है। इन सबके बीच जल बचाने, जीवन बचाने की चिंताएं हैं, विकलता है, बेचैनी भी है। सीमा हरि के गीतों के साथ प्रकृति की यात्रा करना सुखद अनुभव से गुजरना है। पृथ्वी और मनुष्य के आत्मीय रिश्तों को परिभाषित करते ये गीत तनावग्रस्त समकालीनता को खारिज करते हैं।

जो रचनाकार आम आदमी की संवेदना, अनुभूति की संस्कृति और अभिव्यक्ति के रूप प्रकारों से जितनी गहराई के साथ जुड़ा होगा उसकी रचना उतनी ही स्वाभाविक, जीवंत एवं सम्प्रेषणीय होगी। अनुभव की गहराई से उद्भूत इन गीतों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलू उजागर हुए हैं। हर्ष है तो विषाद भी है, समाधान तलाश करती समस्याएँ हैं, अनुत्तरित प्रश्न हैं, निराशा में आशा का सम्बल है, राजनैतिक छद्म, सामाजिक विसंगति, बाजार, उपभोक्ता संस्कृति, नैतिक मूल्यों का क्षरण, परिवारों का टूटना, श्रम का देय प्रेय, कवि का स्वाभिमान, जीवन के प्रति आस्था और विश्वास का दृढ़ स्वर, ऐसी कई विषयवस्तु हैं जिनपर सीमा हरि के गीतों का वितान खड़ा है। कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैं-
"झिलमिलाती धूप सच तो सच अँधेरा भी यहाँ"/ इंद्रधनुषी रूप के संग धुंध का घेरा यहाँ।(पृ ३९)।
"मन की बातें मन से लिखकर मन तक ही पहुँचाना है/ व्यथा कथा इस जग की लिखकर जग को ही समझाना है।" (पृ ४७)
"खेलने की उम्र सारी बोझ के पगतल दली/ भूख-भट्टी में झुलसकर उम्र बचपन की ढली।" (पृ ५०)
"तुम भी जागो नया सवेरा बोल रहा है।" (पृ ६४)
"बरसौं बरस जलाया अब तक रावण नहीं मरा।" (पृ ८०)
"तुम व्यथा अपनी कहो तो/ हम सभी हल ढूँढ लेंगे।"(पृ ८४)
"हों भले ही स्वर्ण की कब / रास आईं शृंखलाएँ।" (पृ ९४)

उपर्युक्त उदाहरण हमें अवगत कराते हैं कि सामाजिक जीवन के विरोधाभासों, विसंगतियों, प्रकृति से अनुराग और सामाजिक प्रतिबद्धता के बीच सीमा हरि शर्मा का रचना संसार निर्मित होता है। इन गीतों में सामाजिक चेतना, राजनैतिक चेतना, और लोक चेतना का व्यवहारिक पक्ष मुखर है। ये गीत हमारी जातीय संस्कृति की ज़मीन को बचाये रखने की पुरजोर वकालत करते हैं। उनके गीत एक भिन्न मुहावरा गढ़ते हैं। सहज, सरल बोधगम्य भाषा तथा छंदनुशासन में रचे बसे ये गीत देर तक स्मृतियों में बने रहेंगे यह विश्वास है।
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गीत- नवगीत संग्रह - गीत अँजुरी, रचनाकार- सीमा हरि शर्मा, प्रकाशक- पहले पहल प्रकाशन, भोपाल। प्रथम संस्करण- २०१९, मूल्य सजिल्द- रूपये ३५०/- पेपर बैक रुपये ३००/-,  पृष्ठ- १३५, आलेख - शिव कुमार अर्चन, ISBN-  978-93-92212-03-1
 

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