tag:blogger.com,1999:blog-6787499593321862745.post5962358036474712657..comments2023-04-16T18:31:17.279+05:30Comments on संग्रह और संकलन: जब से मन की नाव चली- आकुलनवगीत की पाठशालाhttp://www.blogger.com/profile/03110874292991767614noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6787499593321862745.post-59266546786300133762016-09-16T21:40:41.042+05:302016-09-16T21:40:41.042+05:30मैंने 'आकुल' की यह कृति आद्योपांत पढी ...मैंने 'आकुल' की यह कृति आद्योपांत पढी है.आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की समीक्षा का अंश ''जब से मन की नाव चली'' के नवगीत आकुल जी के उक्त मंतव्य के अनुसार ही रचे गए हैं। उनके अभिमत से असहमति रखनेवाले रचनाकार और समीक्षक छन्दानुशासन की कसौटी पर इनमें कुछ त्रुटि इंगित करें तो भी इनका कथ्य इन्हें ग्रहणीय बनाने के लिए पर्याप्त है। किसी रचना या रचना-संग्रह का मूल्यांकन समग्र प्रभाव की दृष्टि से करने पर ये रचनाएँ सारगर्भित, सन्देशवाही, गेयात्मक, सरस तथा सहज बोधगम्य हैं। इनका सामान्य पाठक जगत में स्वागत होगा। समीक्षकगण चर्चा के लिए पर्याप्त बिंदु पा सकेंगे तथा नवगीतकार इन नवगीतों के प्रचलित मानकों के धरातल पर अपने नवगीतों के साथ परखने का सुख का सकेंगे। सारत: यह कृति विद्यार्थी, रचनाकार और समीक्षक तीनों वर्गों के लिए उपयोगी होगी।" बेहतरीन बन पडी है, जो पुस्तक का स्वयं में दर्पण है.<br />-डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज',कोटा <br />DrRaghunath Mishr 'Sahaj'https://www.blogger.com/profile/06962719107023118224noreply@blogger.com